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केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान) ने कर्नाटक के श्रृंगेरी में श्री राजीव गांधी परिसर की स्थापना की। इस पवित्र स्थान पर परिसर की स्थापना का निर्णय विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा अत्यंत उचित रूप से लिया गया। इस परिसर का उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम श्री आर. वेंकटरमन द्वारा 13 जनवरी 1992 के शुभ दिन, दक्षिणाम्नाय श्रींगेरी श्री शारदापीठ के जगद्गुरु श्री श्री भारती तीर्थ महास्वामीजी के दिव्य आशीर्वाद से किया गया।

परमपूज्य दक्षिणाम्नाय शृंगेरी श्री शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु श्री श्री भारती तीर्थ महास्वामी जी के परम अनुग्रह द्वारा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री राजीव गांधी परिसर को विशिष्ट स्थान प्रदान करते हुए इस परिसर को श्री भारती तीर्थ शास्त्र समुत्कर्ष केंद्र के रूप में दिनांक 11 अगस्त सन् 2025 को प्रतिष्ठित किया गया । श्री भारती तीर्थ शास्त्र समुत्कर्ष केंद्र का उद्घाटन केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति आचार्य श्री निवास वरखेड़ी महोदय, विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलसचिव आचार्य आर.जी.मुरलीकृष्ण महोदय के विशेष अनुग्रह तथा प्रयत्न द्वारा पुनर्प्रतिष्ठापित यह परिसर विशिष्टशास्त्राध्ययन केन्द्र के रूप में जाना जाता है । शास्त्रसमुत्कर्ष केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित इस परिसर के उद्घाटन समारोह के विशिष्ट अतिथि आचार्य गन्टि सूर्यनारायणमूर्ति महोदय (राष्ट्रीय संयोजक भारतीय ज्ञानपरम्परा योजना), विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य श्रीनिवास वरखेड़ी महोदय, परिसर के तत्कालीन निदेशक आचार्य हंसधर झा महोदय की उपस्थिति श्लाघनीय थी । विशिष्ट शास्त्राध्ययन केन्द्र के गौरव को स्थापित करने के लिए यह परिसर शैक्षणिक सत्र 2025-2026 से विशिष्ट संसाधनों द्वारा सुसज्जित है । इस केन्द्र का मूलोद्देश्य प्राक्-शास्त्री एवं शास्त्री स्तर से गुरुकुल पद्धति का अनुशरण करते हुए शास्त्रीय क्षेत्र में विशिष्ट ज्ञान प्रदान कराना है । साथ ही साथ शिक्षणाधिगम के विविध तंत्रों को सैद्धान्तिक तथा प्रायोगिक रूप से सफल बनाते हुए भारतीय ज्ञान परम्परा को अभिष्ट स्थान प्राप्त कराना है ।

वर्तमान में यह परिसर प्राक्-शास्त्री, शास्त्री, आचार्य, शिक्षा-शास्त्री, शिक्षाचार्य तथा विद्यावारिधि पाठ्यक्रमों का संचालन करता है, क्रमशः ये सभी पाठ्यक्रम इंटरमीडिएट, बी.ए., एम.ए., बी.एड., एम.एड. तथा पीएच.डी. उपाधियों के समकक्ष हैं । इन सभी पाठ्यक्रमों की मान्यताएं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (U.G.C.) द्वारा प्राप्त हैं तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा इसकी मान्यताएं स्वीकृत हैं । यह विश्वविद्यालय भारतीय विश्वविद्यालय संघ (Association of Indian Universities) का सम्मानित सदस्य है । इन पाठ्यक्रमों के अतिरिक्त, विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास हेतु इतिहास, अंग्रेज़ी, कन्नड़, हिंदी, कंप्यूटर शिक्षा, योग तथा पर्यावरण शिक्षा जैसे आधुनिक विषयों की भी शिक्षाएं उपलब्ध हैं। परिसर में सुव्यवस्थित शैक्षणिक-प्रशासनिक-सह-शैक्षणिक भवन, सभागार, सम्मेलन कक्ष, बालक छात्रावास, बालिका छात्रावास, अतिथि गृह तथा खेल मैदान, शैक्षणिकसंसाधनादि आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध हैं । वर्तमान में अतिरिक्त एक नवीन एवं उन्नत शैक्षणिक भवन का निर्माण कार्य प्रगति पर है ।



विश्वविद्यालय के निर्देशानुसार परिसर में वाक्यार्थ परिषद सभा का आयोजन किया जाता है । इसके अंतर्गत प्राध्यापक संचालित वाक्यार्थ सभा में विद्यार्थियों के समक्ष एक आदर्श वाक्यार्थ प्रस्तुत करते हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य छात्रों में वाक्यार्थ प्रस्तुति करण के कौशलों का विकास करना तथा शास्त्रीय ज्ञान का संवर्धन करना होता है । वाक्यार्थ सभा के आयोजन एक शैक्षणिक सत्र में निर्धारित समय पर किये जाते हैं । वाक्यार्थ परिषद में प्राध्यापक किसी विशेष शास्त्रीय अवधारणा को प्रस्तुत करते हैं, जिसके पश्चात् विचार-विमर्श, प्रश्नोत्तर सत्र का अवसर प्रदान किया जाता है । इस आयोजन में प्राध्यापकों तथा विद्यार्थियों द्वारा जिज्ञासाएं प्रकट की जाती हैं अथवा प्रश्न पूछे जाते हैं तथा व्याख्यान कर्ता किए गये प्रश्नों तथा जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए अपनी वाक्यार्थ प्रस्तुति करता है । इस प्रकार छात्रों में वाक्यार्थ कौशलों तथा प्रश्नकरण कौशलों का विकास होता है । यह विधा परम्परागत शास्त्रीय अध्ययन का सार तत्त्व माना जाता है । परिषद की कार्यवाही, विद्वानों द्वारा प्रस्तुत सारगर्भित विषयों तथा अन्य विद्वानों के शोधपूर्ण लेखों को प्रति वर्ष विश्वविद्यालय अनुदान द्वारा प्रतिष्ठित परिसरीय पत्रिका (UGC. Care Listed journal) “वाक्यार्थ भारती” नामक शास्त्रीय पत्रिका में प्रकाशित किए जाते हैं ।
परिसर में शास्त्रों के प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा विस्तार व्याख्यानों (एक्सटेंशन लेक्चर्स) की श्रृंखला आयोजित की जाती है। इन व्याख्यानों के विषय अंतर्विषयक प्रकृति के होते हैं, जिससे शास्त्रीय अवधारणाओं पर विभिन्न दृष्टिकोणों का परिचय एवं विमर्श किया जाता है। इसके द्वारा शास्त्रीय प्रमेय अथवा शास्त्रीय सिद्धान्तों की सम्यक अवधारणाएं विकसित करने में सहायता मिलती है । इस प्रकार प्रत्येक शैक्षणिक वर्षों में व्याकरण, साहित्य, मीमांसा, न्याय, अद्वैत वेदांत, फलित ज्योतिष तथा शिक्षा-शास्त्र विषयों पर कुल छह व्याख्यान मालाएं आयोजित किए जाते हैं। विद्वानों द्वारा दिए गए इन व्याख्यानों को विद्यार्थियों एवं संकाय सदस्यों के हित के लिए पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जाता है।
वाग्वर्धिनी परिषद परिसर के विद्यार्थियों के लिए शैक्षणिक तथा विभिन्न सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों के सर्वांगीण विकास का एक मंच है। यह मंच संकाय सदस्यों के मार्गदर्शन में विद्यार्थियों के प्रतिनिधियों द्वारा संचालित किया जाता है। यह परिषद प्रत्येक गुरुवार को आयोजित की जाती है, जिसमें विद्यार्थियों को शास्त्र, संस्कृति आदि क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा को व्यक्त करने एवं प्रदर्शित करने का अवसर प्राप्त होता है।
परिसर की स्थापना का मुख्य उद्देश्य प्राचीन भारतीय शास्त्रों का संरक्षण एवं प्रसार करना है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए कुलपति महोदय ने एक पारंपरिक शास्त्रार्थ सभा के आयोजन के प्रस्ताव की स्वीकृति प्रदान की है, जो शास्त्रीय परंपरा एवं शास्त्रीय ज्ञान के संरक्षण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है । यह सभा प्रत्येक दो वर्षों में एक बार परिसर में श्री श्री श्री भारती तीर्थ महास्वामी शास्त्रार्थ सभा के तत्वावधान में आयोजित की जाएगी । इसके आयोजन की रूपरेखा तैयार की जा रही है तथा देश के विभिन्न भागों से विद्वानों को इस सभा में आमंत्रित किया जाएगा।
परिसर में कार्यरत शिक्षक अपने-अपने विशेषज्ञता के क्षेत्रों में सुविख्यात एवं सुदृढ़ रूप से स्थापित हैं तथा उनकी शास्त्रीय विद्वत्ता को शास्त्रीय अध्ययन के पारंपरिक केंद्रों, विभिन्न मठों द्वारा यथोचित रूप से सम्मानित किया गया है । संकाय के अनेक सदस्यों ने विद्वानों की प्रतिष्ठित मंडली के समक्ष कठोर शास्त्रीय परीक्षाओं से होकर गुजरते हुए अपनी विद्वत्ता का प्रमाण दिया है । कुछ शिक्षकों को विभिन्न संस्थानों द्वारा युवा विद्वान पुरस्कार भी प्रदान किए गए हैं । इस परिसर में कार्यरत विद्वानों को, अल्प आयु में ही, विभिन्न संस्थानों में शास्त्रीय ज्ञान के मूल्यांकन की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, जो स्वयं संकाय की उच्च कोटि की विद्वत्ता का सशक्त प्रमाण है।
इस परिसर के विद्यार्थी पूर्णतः आत्मानुशान प्रिय हैं और वे सदैव पारंपरिक शास्त्रीय अध्ययन में संलग्न रहते हैं । अनेक विद्यार्थियों ने राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं तथा शलाका परीक्षाओं में पुरस्कार प्राप्त किए हैं। इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय स्तरे पर विजय वैजयन्ती, आर.एस. विश्वविद्यालय, तिरुपति की विजय वैजयन्ती तथा युवा महोत्सव विजय वैजयन्ती जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार भी अर्जित किए हैं। हमारे परिसर के उनतीस (29) विद्यार्थियों ने संस्थान की परीक्षाओं में स्वर्ण पदक प्राप्त किए हैं।
परिसर के विद्यार्थी विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं में भी उत्कृष्ट रैंक प्राप्त कर रहे हैं । भारत में सामान्य संस्थानों तथा प्रतिष्ठित संस्थानों के मध्य यह परिसर अपनी उन्नत पारंपरिक शिक्षण-पद्धति एवं सर्वोत्तम शिक्षक-प्रशिक्षण के लिए विशिष्ट रूप से जाना जाता है।
परिसर ने दुर्लभ शास्त्रीय (संस्कृत) पांडुलिपियों के संकलन एवं संरक्षण का एक विशाल कार्य आरंभ किया है, तथा अब तक विभिन्न शास्त्रीय विषयों से संबंधित 128 दुर्लभ पांडुलिपियाँ संकलित की जा चुकी हैं।
नियमित शिक्षण एवं प्रशिक्षण के अतिरिक्त, यह परिसर संस्थान के सक्षम मार्गदर्शन में विस्तृत गतिविधियाँ भी संचालित कर रहा है । संस्कृत के प्रचार-प्रसार हेतु तथा अनौपचारिक संस्कृत शिक्षा प्रदान करने हेतु कर्नाटक राज्य का दायित्व इस परिसर को सौंपा गया है। कर्नाटक राज्य में इस प्रकार के 35 से अधिक अनौपचारिक संस्कृत शिक्षण केंद्र कार्यरत हैं।
इसके अतिरिक्त, परिसर प्रत्येक वर्ष नियमित रूप से दस-दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर तथा संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण शिविर आयोजित करता है। साथ ही परिसर में संस्कृत सप्ताह समारोहों के दौरान संस्कृत भाषा, साहित्य, संस्कृति आदि के प्रचार हेतु विविध कार्यक्रम तथा गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं, जिन्हें समाज द्वारा अत्यंत सराहा जाता है और व्यापक स्तर पर प्रशंसा प्राप्त होती है।
परिसर में कंप्यूटर शिक्षा हेतु सभी आवश्यक सुविधाओं से युक्त एक कंप्यूटर प्रयोगशाला स्थापित है। प्राक्-शास्त्री, शास्त्री स्तर तथा आचार्य स्तर के विद्यार्थियों को संगणक विषय का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। उन्हें संगणकीय प्रोग्रामिंग तथा विभिन्न संप्रेषणात्मक तकनीकियों के अनुप्रयोगों का शिक्षण तथा प्रशिक्षण दिया जाता है।
परिसर में विभिन्न भाषाओं के अध्ययन हेतु आवश्यक सभी सुविधाओं से युक्त 18 कंप्यूटरों से सुसज्जित एक सुसंस्कृत भाषा शिक्षण प्रयोगशाला उपलब्ध है। इस प्रयोगशाला के माध्यम से शास्त्रीय छात्रों तथा शिक्षाशास्त्रीय स्तर के सभी विद्यार्थियों को प्रशिक्षण प्रदान करने का अवसर दिया जाता है।
शिक्षाशास्त्र विभाग में सुसज्जित मनोविज्ञान प्रयोगशाला उपलब्ध है। इसमे शिक्षामनोवैज्ञान के संबंधित विभिन्न सिद्धांतों पर 14 प्रयोगात्मक अभ्यासों के संचालन हेतु सभी आवश्यक उपकरण उपलब्ध हैं। परंपरागत रूप से अध्ययनरत संस्कृतभाषा के छात्राध्यापकों को मनोविज्ञान की आधुनिक विधियों में प्रशिक्षण दिया जाता है । मनोविज्ञान की इस प्रयोगशाला में प्राप्त अनुभवों के आधार पर प्रशिक्षु अध्यापकों को शैक्षणिक, दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक आधारों पर नवाचार हेतु तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित एवं अभिप्रेरित किया जाता है।
शिक्षा-शास्त्र विभाग में शैक्षिक प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला भी सुसज्जित है, जिसमें शैक्षिक नवाचारात्मक अभ्यासों हेतु आवश्यक मूलभूत उपकरण उपलब्ध हैं। यह प्रयोगशाला प्रशिक्षु अध्यापकों को ओ.एच.पी, एल.सी.डी. प्रोजेक्टर, कंप्यूटर पी.पी.टी. प्रस्तुतियाँ, स्लाइड प्रोजेक्टर आदि के माध्यम से भाषा शिक्षण अथवा संस्कृत शिक्षण में आधुनिक प्रविधियों के उपयोग का प्रशिक्षण प्रदान करती है। प्रयोगशाला में टी.वी. रेडियो (डिश एंटीना सहित), टेप रिकॉर्डर आदि उपकरण भी उपलब्ध हैं।